माँ माँ मुझे ले दो छाता
वर्षा में मेरा बास्ता भीगा भीग गयी सारी किताबे
कापियां जुते और जुराबे
सौ रुपैयों का आया छाता
मन को मेरे भाया छाता
बिना बारिश के भी अब
बच्चा लेकर घुमे छाता U से होता है अम्ब्रेला
देखने जाऊ आज मै मेला पापा जी लेकर आये हांजी
छाता मेरा बड़ा अलबेला पार्थवी

7 टिप्पणियां:
हा हा ,मस्त...हम भी पहले छाता लेकर जाते थे चाहे बारिश हो या न हो :)
चलो पापा जी ने छाता तो ले ही आये न आपके लिए :)
nice post
हाँ, अब तो बरसात भी आ रही है। छाता तो आना ही चाहिए।
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ब्लॉगवाणी माहौल खराब कर रहा है?
पार्थवी की मुस्कान से पता चलता है वो छाता मिलने से कितनी ज्यादा खुश है जी
waah.........kyaa baat hai....apan ka bacchhaa baahar nikal kar baarish men beegne lagaa.....
बहुत प्यारी मुस्कान..
बहुत प्यारी तस्वीरे है और कविता भी
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